A story i wrote out of nowhere.

और फिर पता है क्या हुआ

और फ़िर मैंने पता है क्या किया

और बताओ फिर मैं क्या करती….

एक रोज़ इन्ही संयोजकों की सहायता से मैं अपनी बातें बढ़ाए जा रही थी

या अपनी आम भाषा में कहू तो चपड चपड़ बोले जा रही थी…

तभी मेरी बातों को बीच मैं काटते हुए मेरे बाबा जी बोले

"अति का भला न बोलना

अति का भला न चुप

अति का भला न बरसना

अति की भली न धूप"

मैने यह पंक्तियां उनके मुंह से पहले भी सुनी थी परंतु मतलब?

वो मुझे क्या ही pta होगा

और पता करके मै क्या ही करूंगी

सो मैंने बाबाजी के कीमती सीख के बदले एक बहुत तकड़ी प्रतिक्रिया दी जो थी

हम्मममममम

और फिर अपनी धुन मैं मस्त बोली

और फिर पता है क्या हुआ….

बाबाजी लगभग झेपते हुए बोले

तुझे मतलब समझ आया?

हालांकि मेरी अकल और शकल से जाहिर था

फिर भी मैं बोली

कैक्टट…

बाबाजी ने समझाया

इसका मतलब है न जादा बोलना अच्छा होता है

और न ज्यादा चुप रहना

जिस प्रकार न ज्यादा धूप अच्छी है और न ज्यादा छाव

हर चीज संतुलित ही अच्छी हैं

किसी भी चीज की अति भली नही

मैं बाल बुद्धि से परिपक्व बोली

पर बहुत सारा पैसा तो अच्छा है

और भौत सारी पढ़ाई करना भी तो अच्छा है

बाबाजी परेशान होके बोले

"जा जा तु स्कूल चली जा"

और मैं भी अपनी धुन मैं मगन बस्ता उठा स्कूल की और चल दी।

स्कूल पहुंची तो प्रार्थना स्थल पर वाद विवाद चल रहा था। विषय था: विज्ञान आशीर्वाद है या श्राप

जिसका निष्कर्ष था: की अगर संतुलित मात्रा मैं उपयोग हो तो आशीर्वाद और अगर अति हो तो अभिशाप

दूसरी राउंड की वाद विवाद मैं विषय था

सोशल मीडिया आशीर्वाद है या अभिशाप?

इसका भी निष्कर्ष यही: संतुलित मात्रा में उपयोग हो तो आशीर्वाद और अति हो तो अभिशाप

अब धीरे धीरे मुझे बाबाजी की बातें समझ आ ही रही थी की स्कूल का न्यूज बुलेटिन शुरू हो गया

समाचार वाचक बोली:

किसी बड़े उद्योगपति के घर छापा पड़ा है!

और उसकी जेल हो गई है!

मुझे अपने सवाल का जवाब लगभग mil गया था

की क्या अति का पैसा अच्छा है?

मैं इससे उभर ही पाती इतने मैं ही

वो दोबारा बोली

एक छात्र ने पढ़ाई के दवाब मैं आकर आत्म हत्या कर ली!

अब बात पानी की तरह साफ थी!

किसी चीज की अति अच्छी नहीं

मैं यह समझ चुकी थी

या कुछ यूं कहूं की अपनी कमी को पहचान चुकी थी

और आज इस बात को १० साल बीत चुके है…

और यह बताने की जरूरत तो नही की मैं आज भी बोहोत बोलती हूं।

अतः अपनी कमियों को जानना एक बेहतर इंसान बनने की और महतवपूर्ण कदम है पर कुछ इससे भी महत्वपूर्ण है। वो है: उस कमी पर काम करना!

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Diksha Kajla

just a normal human being figuring out what i am!